Strategic Thinking
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आज हम बात करने वाले हैं स्ट्रेटेजिक माइंडसेट बाय थिबॉ म्यूस बुक के बारे में।
प्रकाश, एक 32 साल का आदमी, जो हमेशा से अपनी लाइफ को लेकर थोड़ा-सा कंफ्यूज रहा है। वह एक मिड-साइज कंपनी में काम करता है और हर महीने सैलरी मिलने पर बस यही सोचता है कि आखिर वह अपनी लाइफ में क्या कर रहा है।
कुछ साल पहले उसने बड़े सपने देखे थे—एक अच्छी नौकरी, खुद का घर, और वह सब कुछ जो एक परफेक्ट लाइफ के लिए चाहिए। लेकिन अब दिन बस ऑफिस के काम और वीकेंड की बिंज वॉचिंग में निकल जाते हैं।
एक दिन ऑफिस से लौटते वक्त, मेट्रो में बैठे-बैठे प्रकाश ने सोचा कि उसे अपनी लाइफ में कुछ बदलने की जरूरत है। उसने अपने दोस्त अरुण को फोन किया, जो हमेशा उसे कुछ नया पढ़ने और सीखने की सलाह देता था। अरुण ने एक किताब सजेस्ट की—स्ट्रेटेजिक माइंडसेट।
यह किताब सात दिनों की योजना को पहचानने और एक ऐसी रणनीति बनाने के लिए है, जो काम करती है।
प्रकाश ने तुरंत अपने फोन में किताब डाउनलोड कर ली। उस रात उसने खुद से प्रॉमिस किया कि चाहे कुछ भी हो, वह इस किताब को पूरा पढ़ेगा।
अगली सुबह
प्रकाश ने अपना अलार्म जल्दी सेट किया और दिन की शुरुआत किताब के पहले चैप्टर से की।
पहला लेसन था: “द इंपॉर्टेंस ऑफ लॉन्ग–टर्म गोल्स“।
शुरुआत में यह टॉपिक उसे थोड़ा भारी लगा। लेकिन जैसे-जैसे उसने पढ़ना शुरू किया, उसे समझ आने लगा कि शायद यही उसकी लाइफ का मिसिंग पीस है।
किताब में लिखा था:
“अगर आपकी लाइफ में कोई लॉन्ग–टर्म गोल नहीं है, तो आप अपने छोटे–छोटे डिसीज़न्स में ही उलझ कर रह जाते हो।“
प्रकाश को अचानक वह सारे पल याद आए जब उसने अपने गोल्स क्लियर नहीं किए थे। कभी उसने अपनी सेविंग्स प्लान नहीं की, तो कभी अपनी करियर ग्रोथ पर ध्यान नहीं दिया।
किताब पढ़ते हुए उसे रियलाइज़ हुआ कि वह हमेशा इमीडिएट नीड्स पर फोकस करता था—जैसे सैलरी मिलने पर शॉपिंग करना या वीकेंड पर फ्रेंड्स के साथ घूमना। लेकिन लॉन्ग-टर्म गोल्स की प्लानिंग उसके दिमाग में कभी आई ही नहीं।
एनालॉजी
किताब में एक शानदार एनालॉजी दी गई:
“थिंक ऑफ योर लाइफ ऐज अ शिप विदाउट अ क्लियर डेस्टिनेशन। द विंड्स एंड करंट्स विल टेक यू व्हेयर दे वांट। बट इफ यू हैव अ क्लियर गोल, यू कैन स्टियर द शिप अकॉर्डिंगली।“
प्रकाश को लगा कि उसकी लाइफ भी एक ऐसी ही भटकी हुई शिप की तरह है। उसने खुद से पूछा:
“मेरा अल्टीमेट गोल क्या है?”
लेकिन जवाब कुछ साफ नहीं था।
किताब में लिखा था:
“लॉन्ग–टर्म गोल्स को सेट करना जरूरी है क्योंकि यह आपके रोज़मर्रा के डिसीज़न्स को शेप करते हैं।“
अगर आपका गोल क्लियर होगा, तो आप डिस्ट्रैक्शन्स से बच सकते हैं।
पहला कदम
प्रकाश ने तुरंत अपनी नोटबुक उठाई और अपने कुछ बड़े सपनों को लिखने की कोशिश की।
पहले उसने एक जेनेरिक गोल लिखा:
“मैं सक्सेसफुल बनना चाहता हूं।“
लेकिन जैसे ही उसने इसे पढ़ा, उसे लगा कि यह बहुत वेग है। किताब में बताया गया था कि गोल्स को स्पेसिफिक और मेज़रेबल होना चाहिए।
इस पर काम करते हुए उसने लिखा:
“5 साल में मुझे अपने फील्ड में एक सीनियर पोजीशन पर पहुंचना है।“
यह गोल उसे कुछ सॉलिड और अचीवेबल लगा।
फिर उसने अपनी पर्सनल लाइफ के लिए गोल्स लिखे, जैसे अपनी हेल्थ पर ध्यान देना और एक घर खरीदना।
लगातार रिव्यू की आदत
किताब ने उसे एक और चीज़ सिखाई:
“अपने गोल्स पर रेगुलरली रिफ्लेक्ट करना।“
थिबॉ म्यूस ने लिखा था:
“गोल्स को सिर्फ लिखकर छोड़ देना काफी नहीं है। उन्हें टाइम–टू–टाइम रिव्यू करना जरूरी है ताकि आप देख सकें कि आप सही ट्रैक पर हैं या नहीं।“
प्रकाश को यह बात बहुत प्रैक्टिकल लगी। उसने अपने फोन में वीकली रिमाइंडर सेट किया:
“रिव्यू योर गोल्स।“
उसे किताब में एक कोट याद आया:
“आपके लक्ष्य आपको थोड़ा डरा दें और बहुत ज्यादा उत्साहित करें।“
यह लाइन उसे बेहद इंस्पायरिंग लगी। उसने सोचा:
“अगर मेरे गोल्स मुझे चैलेंज नहीं कर रहे, तो शायद वे वर्थ अचीविंग नहीं हैं।“
डेली प्रोग्रेस का वादा
प्रकाश ने डिसाइड किया कि वह हर दिन कम से कम 30 मिनट अपने गोल्स की तरफ काम करेगा—चाहे वह कुछ नया सीखना हो, कोई स्किल डेवलप करना हो, या बस अपनी हेल्थ इंप्रूव करना हो।
उसने एक ऐप डाउनलोड की, जहां वह अपने डेली प्रोग्रेस को ट्रैक कर सके।
ऑफिस में उस दिन उसे कुछ अलग लगा। अब उसे अपनी लाइफ को एक नए लेंस से देखना आ गया था। वह अपने काम पर पहले से ज्यादा ध्यान देने लगा क्योंकि उसे पता था कि यही उसकी लॉन्ग-टर्म स्ट्रेटेजी का हिस्सा है।
शाम को घर लौटकर उसने फिर से किताब पढ़ना शुरू किया।
पहला लेसन, बड़ा बदलाव
उस दिन उसने सिर्फ पहला लेसन ही खत्म किया था, लेकिन उस लेसन ने उसकी सोच बदल दी थी।
प्रकाश ने महसूस किया कि अगर वह अपनी लाइफ में बड़ा बदलाव लाना चाहता है, तो उसे स्मॉल बट कंसिस्टेंट स्टेप्स लेने होंगे।
रात को सोने से पहले उसने अपने गोल्स को दोबारा पढ़ा और खुद से वादा किया:
“चाहे कितना भी मुश्किल क्यों न हो, मैं अपनी लाइफ को बेहतर बनाने के लिए हर संभव कोशिश करूंगा।“
नई शुरुआत
अगली सुबह प्रकाश ने फिर से अलार्म की आवाज पर उठते ही किताब खोल ली।
उसने सोचा: “कल की तरह, आज भी कुछ नया सीखने को मिलेगा।“
पहले चैप्टर ने उसकी सोच को पूरी तरह बदल दिया था। अब वह अपनी लाइफ में फोकस और क्लैरिटी लाने के लिए जेनुइनली एक्साइटेड था।
आज का लेसन था:
“इफेक्टिवनेस ओवर एफिशिएंसी।“
प्रकाश ने पढ़ना शुरू किया और धीरे-धीरे हर लाइन में डूबता चला गया।
किताब की शुरुआत में मेरिस ने एक सवाल पूछा: आर यू डूइंग द राइट थिंग्स और जस्ट डूइंग थिंग्स राइट? इस सवाल ने प्रकाश को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसने खुद से पूछा: क्या मैं अपने दिन भर के कामों को सही तरीके से करने में लगा हूं या वह काम सही भी है, जो मैं कर रहा हूं?
प्रकाश ने ध्यान से पढ़ा कि मिरिस क्या समझाना चाहते थे। किताब में लिखा था कि एफिशिएंसी का मतलब है कोई काम सही तरीके से, कम समय में और ज्यादा प्रोडक्टिविटी के साथ करना। लेकिन इफेक्टिव का मतलब है ऐसे काम करना जो आपकी प्रायोरिटी और गोल से अलाइन हो। एक तरह से इफेक्टिव का मतलब है सही चीजों को चुनना।
प्रकाश को यह बात बेहद प्रैक्टिकल लगी। उसने खुद के पिछले कुछ दिनों के कामों को याद किया। सुबह उठकर जिम जाना तो वह हमेशा टाल रहा था, लेकिन ऑफिस में वह ईमेल्स जल्दी से जल्दी रिप्लाई करने के लिए हमेशा एफिशिएंट था। उसने सोचा: मैं अपनी एनर्जी ऐसी चीजों पर खर्च कर रहा हूं, जो शायद मेरी प्रायोरिटी में नहीं आतीं। ईमेल्स रिप्लाई करना जरूरी है, लेकिन क्या यह मेरे लॉन्ग-टर्म गोल्स को अचीव करने में मदद कर रहा है?
किताब में एक इंटरेस्टिंग एग्जांपल दिया गया था। अगर कोई बहुत एफिशिएंटली एक सीढ़ी चढ़ता है, लेकिन वह सीढ़ी गलत दीवार के सहारे लगी हो, तो उसका मेहनत करना बेकार है। प्रकाश को यह एग्जांपल अपने ऊपर पूरी तरह फिट लगा। उसने महसूस किया कि उसकी एफिशिएंसी सिर्फ रोजमर्रा के छोटे-मोटे टास्क्स को पूरा करने में जा रही थी, जबकि उसे अपने बड़े गोल्स पर काम करना चाहिए था।
उस दिन उसने खुद के लिए एक एक्टिविटी प्लान की। उसने अपने पूरे दिन के टास्क्स की एक लिस्ट बनाई। फिर उसने उन सभी टास्क्स को कैटेगरी में डाला: इंपॉर्टेंट, अर्जेंट और नाइदर। उसने देखा कि उसके दिन के ज्यादातर काम अर्जेंट की कैटेगरी में आते थे, लेकिन इंपॉर्टेंट यानी जो उसकी लाइफ में असल मायने रखते हैं, वह बहुत कम थे।
किताब में एक सुझाव था: लर्न टू से नो टू थिंग्स दैट डोंट अलाइन विथ योर गोल्स। प्रकाश को याद आया कि ऑफिस में अक्सर वह अपने कॉलीग की मदद के लिए अपने काम छोड़ देता था या ऐसे मीटिंग्स में बैठता था, जिनका उससे कोई लेना-देना नहीं होता था। उसने ठान लिया कि अब वह अपनी प्रायोरिटी पर फोकस करेगा।
उस दिन ऑफिस में उसने इस लेसन को प्रैक्टिकली अप्लाई करने की कोशिश की। जैसे ही एक कॉलीग ने उससे मदद मांगी, उसने पोलाइट मना कर दिया। यह उसके लिए नया था, क्योंकि वह हमेशा दूसरों की एक्सपेक्टशंस पूरी करने में जुटा रहता था। लेकिन आज उसने अपने काम पर फोकस किया।
शाम को घर आकर उसने अपनी नोटबुक निकाली। उसने दिन भर के अपने कामों का एनालिसिस किया। उसे लगा कि उसने एफिशिएंट बनने के बजाय इफेक्टिव बनने की तरफ एक कदम बढ़ा लिया है। उसने सोचा कि यह सिर्फ शुरुआत है। उसे अपनी प्रायोरिटी और गोल्स के हिसाब से काम करने की आदत डालनी होगी।
किताब में एक और बात लिखी थी, जो प्रकाश को बहुत अच्छी लगी: बिजीनेस इज नॉट अ बैज ऑफ ऑनर। इट इज ऑफ्टन अ साइन ऑफ पूर प्रायोरिटी। उसने महसूस किया कि वह अक्सर अपने दोस्तों से कहता था: मैं बहुत बिजी हूं। लेकिन अब उसे समझ आया कि बिजी होना अच्छी बात नहीं है, अगर आप सही चीजों पर काम नहीं कर रहे।
उस रात उसने अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए एक नया सिस्टम प्लान किया। उसने डिसाइड किया कि हर सुबह वह दिन के सबसे इंपॉर्टेंट तीन काम लिखेगा। वह उन तीन कामों को पहले पूरा करेगा, भले ही बाकी काम बाद में हों। उसने इसे अपनी “टॉप थ्री प्रायोरिटी” नाम दिया।
अगली सुबह प्रकाश ने इस प्लान को फॉलो किया। उसने लिखा:
- एक घंटे के लिए सेल्फ-लर्निंग के लिए किताब पढ़ना।
- अपने प्रेजेंटेशन की स्ट्रेटेजी पर काम करना।
- अपनी फिटनेस के लिए 30 मिनट की वॉक।
शुरुआत में उसे यह कुछ चैलेंजिंग लगा। पुराने हैबिट्स बार-बार आड़े आ रहे थे, जैसे ईमेल्स चेक करना या सोशल मीडिया पर टाइम वेस्ट करना। लेकिन उसने खुद को डिसिप्लिन रखा। दिन के अंत में, जब उसने अपनी प्रायोरिटी पूरी कर ली, तो उसे अंदर से सैटिस्फैक्शन हुआ। उसने महसूस किया कि वह सिर्फ काम कर रहा था, बल्कि सही काम कर रहा था।
किताब में एक और इंटरेस्टिंग कांसेप्ट था, “परेटो प्रिंसिपल”, जिसे “80/20 रूल” भी कहा जाता है। इसमें बताया गया था कि आपकी 80% अचीवमेंट्स आपकी 20% एफर्ट से होती हैं।
प्रकाश ने इस कांसेप्ट को अपनी लाइफ पर अप्लाई करने की सोची। उसने लिखा कि कौन से 20% काम उसे उसकी 80% सक्सेस देंगे। उसने पाया कि सेल्फ-लर्निंग, नेटवर्किंग और हेल्थ पर ध्यान देना उसकी स्क्रिप्ट के सबसे बड़े फैक्टर्स हैं।
अगले कुछ दिनों में प्रकाश ने नोटिस किया कि उसकी माइंडसेट बदलने लगी है। वह अब हर काम को करने से पहले खुद से पूछता: क्या यह मेरे गोल्स के लिए जरूरी है? अगर जवाब “नहीं” होता, तो वह उस काम को या तो छोड़ देता या बाद के लिए टाल देता। उसने सोशल मीडिया यूसेज भी कम कर दिया और उस वक्त को सेल्फ-इंप्रूवमेंट में लगाने की कोशिश की।
एक दिन उसका दोस्त अरुण उससे मिलने आया। अरुण ने प्रकाश में आए बदलाव को नोटिस किया। उसने पूछा: “तू इतना ऑर्गेनाइज और फोकस्ड कैसे हो गया?”
प्रकाश ने मुस्कुराते हुए उसे किताब का नाम बताया और कहा: “यार, बस यह सीख लिया है कि बिजी होने से ज्यादा जरूरी है सही काम करना।”
अरुण ने हंसते हुए कहा: “लगता है अब तू सच में लाइफ में कुछ बड़ा करने वाला है।”
प्रकाश ने सिर हिलाया और कहा: “बिल्कुल। लेकिन यह जर्नी तो अभी शुरू हुई है। मुझे और भी बहुत कुछ सीखना है।”
रात को प्रकाश ने अपनी जर्नल में लिखा: “इफेक्टिव इज नॉट अबाउट डूइंग मोर, इट्स अबाउट डूइंग व्हाट मैटर्स। टुडे आई फील लाइक आई एम फाइनली ऑन द राइट ट्रैक।“
अगली सुबह, प्रकाश अलार्म की आवाज पर उठा तो कुछ एनर्जेटिक महसूस कर रहा था। वह समझ चुका था कि किताब की हर सीख उसे अपनी जिंदगी में नई क्लैरिटी दे रही है। उसने खुद से कहा, “चलो देखते हैं, आज क्या सीखने को मिलता है।”
उसने जल्दी-जल्दी अपनी चाय बनाई और किताब खोल ली। आज का लेसन था इंक्रीमेंटल ग्रोथ। जैसे ही प्रकाश ने पढ़ना शुरू किया, उसने एक लाइन पर ध्यान दिया: “छोटे सुसंगत कदम शुरुआत में बहुत कुछ नहीं दिखते हैं, लेकिन समय के साथ वे असाधारण परिणाम पैदा करते हैं।“ यह पढ़ते ही प्रकाश को अपनी पुरानी आदतें याद आने लगीं।
वह हमेशा बड़े-बड़े गोल सेट करता था, जैसे एक महीने में 10 किलो वजन कम करना या तीन महीने में नई भाषा सीखना। लेकिन कुछ दिन मोटिवेशन के साथ काम करने के बाद वह हार मान लेता। किताब में मोरिसविले का एक उदाहरण था: “जो लास्ट मिनट पढ़ाई करने वाला हमेशा एवरेज रहता था।” प्रकाश को लगा कि यह लेसन उसकी जिंदगी के हर पहलू पर लागू होता है।
उसने खुद से पूछा, “क्या मैं बड़े गोल्स की वजह से खुद को ओवरवेल्म कर रहा हूं? क्या मैं छोटे स्टेप्स को अंडरएस्टीमेट कर रहा हूं?” जवाब एकदम साफ था—हाँ।
किताब में एक और पावरफुल कांसेप्ट दिया गया था: द पावर ऑफ 1% सुधार। मोरिस ने कहा था, “अगर आप हर दिन अपनी किसी स्किल या हैबिट में सिर्फ 1% सुधार करते हो, तो एक साल में आप उस चीज़ में 37 गुना बेहतर हो सकते हो।” यह सुनकर प्रकाश को लगा कि वह हमेशा लॉन्ग जंप्स की सोचता रहा है, जबकि असली सक्सेस छोटे-छोटे कदम उठाने में है।
उसने सोचा, “इसे कैसे अपनी जिंदगी में अप्लाई करूं?”
उसने अपनी नोटबुक निकाली और उन एरियाज को लिखा जहां वह सुधार करना चाहता था। उसने पाया कि सबसे ज्यादा इंप्रूवमेंट की जरूरत उसकी फिटनेस, करियर स्किल्स और टाइम मैनेजमेंट में थी। लेकिन इस बार उसने तय किया कि वह अनरियलिस्टिक गोल्स नहीं बनाएगा। वह छोटे-छोटे एक्शनेबल स्टेप्स पर फोकस करेगा।
फिटनेस के लिए उसने प्लान किया कि हर दिन सिर्फ 15 मिनट वॉक करेगा। पहले वह जिम जॉइन करने और दो घंटे वर्कआउट करने की सोचता था, लेकिन अब उसे समझ आया कि सस्टेनेबल हैबिट्स ही ज्यादा इंपॉर्टेंट हैं। उसने खुद से कहा, “अगर मैं रोज 15 मिनट वॉक कर सकता हूं, तो धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 30 मिनट कर पाऊंगा।”
करियर स्किल्स के लिए उसने रोज 20 मिनट सेल्फ लर्निंग का प्लान बनाया। उसने पहले ही किताब पढ़ने की आदत शुरू कर दी थी, तो उसने सोचा कि इसे और कंसिस्टेंट बनाएगा। उसने लिंक्डइन पर कुछ फ्री कोर्सेस के बारे में भी सर्च किया, जो उसके करियर के लिए प्रासंगिक थे।
टाइम मैनेजमेंट के लिए उसने पोमोडोरो तकनीक आजमाने का सोचा। इस तकनीक में 25 मिनट फोकस के साथ काम करना होता है और फिर 5 मिनट का ब्रेक लिया जाता है। प्रकाश ने महसूस किया कि उसकी प्रोडक्टिविटी अक्सर डिस्ट्रैक्शंस की वजह से कम हो जाती है। यह तकनीक उसे फोकस्ड रहने में मदद कर सकती थी।
उस दिन ऑफिस में प्रकाश ने पहली बार इंक्रीमेंटल ग्रोथ का प्रैक्टिकल टेस्ट किया। उसने सोचा कि वह अपनी सबसे बोरिंग टास्क—एक पुरानी रिपोर्ट को ऑर्गेनाइज करना—25 मिनट के सेशन में करेगा। उसने टाइमर सेट किया और सिर्फ उस काम पर फोकस किया। जैसे ही टाइमर खत्म हुआ, वह हैरान था कि वह काम, जिसे वह कई दिनों से टाल रहा था, अब आधे से ज्यादा खत्म हो चुका था।
शाम को घर आकर उसने अपनी वॉक का रूटीन शुरू किया। उसने हेडफोन्स लगाए और अपने फेवरेट गानों के साथ 15 मिनट की वॉक की। उसे पता था कि यह कोई बड़ी अचीवमेंट नहीं है, लेकिन उसे संतुष्टि हुई कि उसने शुरुआत कर दी है। उसने खुद से कहा, “आज 15 मिनट, कल 20, और फिर धीरे-धीरे एक घंटा।”
किताब में एक और चीज लिखी थी, जिसने प्रकाश को गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया। मोरिस ने लिखा था: “डोंट वेट फॉर मोटिवेशन, फोकस ऑन कंसिस्टेंसी।“ प्रकाश को महसूस हुआ कि वह अक्सर चीजों को शुरू करने के लिए इंस्पिरेशन का इंतजार करता था। लेकिन अब उसने समझा कि मोटिवेशन आ-जा सकती है, कंसिस्टेंसी ही असली कुंजी है।
अगले कुछ दिनों में प्रकाश ने अपनी इंक्रीमेंटल ग्रोथ की फिलॉसफी को अपनी हैबिट्स में उतार लिया। वह सुबह उठते ही किताब के दो पेज पढ़ता, ऑफिस में पोमोडोरो सेशंस में काम करता और शाम को 15-20 मिनट वॉक करता। उसने महसूस किया कि वह हर दिन थोड़ा बेहतर महसूस कर रहा है।
एक दिन उसने सोचा, “क्यों ना इस फिलॉसफी को अपनी फाइनेंस पर भी अप्लाई किया जाए?”
उसने अपने मंथली एक्सपेंसेस का एनालिसिस किया और एक सिंपल रूल बनाया—वह हर महीने अपनी सैलरी का 10% बचाएगा। पहले वह सोचता था कि बड़ी सेविंग्स तभी हो सकती हैं जब उसकी सैलरी बढ़ेगी। लेकिन अब उसे समझ आया कि छोटी सेविंग्स भी लंबे समय में बड़ा फर्क ला सकती हैं। उसने एक अलग सेविंग्स अकाउंट खोल लिया और ऑटोमेट कर दिया कि हर महीने 10% सैलरी उसमें ट्रांसफर हो जाए।
प्रकाश को धीरे-धीरे इस इंक्रीमेंटल ग्रोथ की ताकत महसूस होने लगी। उसने नोटिस किया कि उसका स्ट्रेस लेवल कम हो रहा है क्योंकि अब वह अनरियलिस्टिक एक्सपेक्टेशंस नहीं रखता था। उसने समझ लिया था कि सक्सेस एक मैराथन है, स्प्रिंट नहीं।
एक वीकेंड पर जब प्रकाश अपने दोस्त अरुण से मिला, तो उसने अपनी प्रोग्रेस के बारे में बताया। अरुण ने उसकी बात सुनकर कहा, “तू बहुत सही जा रहा है। लेकिन क्या कभी यह महसूस हुआ कि छोटे-छोटे स्टेप्स कभी-कभी बोरिंग लग सकते हैं?”
प्रकाश ने जवाब दिया, “हाँ, बिल्कुल। लेकिन अब मुझे यह समझ आ गया है कि डिसिप्लिन हमेशा एक्साइटिंग नहीं होता। धीरे-धीरे रिजल्ट्स नजर आने लगते हैं और वही मोटिवेशन देता है।”
अरुण ने मुस्कुराते हुए कहा, “तो अब तू बड़ी लीप्स लेना बंद कर रहा है?”
प्रकाश ने जवाब दिया, “नहीं, बड़े सपने अब भी हैं, लेकिन उन्हें हासिल करने का तरीका बदल गया है। अब मैं छोटे स्टेप्स को भी उतना ही इंपॉर्टेंट मानता हूं जितना डेस्टिनेशन को।”
रात को प्रकाश ने अपनी जर्नल में लिखा:
Small steps are not insignificant; they are the foundation of great achievements. Today I worked for 15 minutes, read five pages, and completed one productive Pomodoro session. These may seem small, but I know they are building a better future for me.
प्रकाश ने अब तक अपनी लाइफ में कई छोटे-छोटे बदलाव करने शुरू कर दिए थे। उसने महसूस किया कि इंक्रीमेंटल ग्रोथ का कॉन्सेप्ट उसकी जिंदगी को बेहतर बना रहा है।
जब उसने किताब का अगला लेसन Managing Energy Cycles पढ़ा, तो उसे लगा कि यह शायद अब तक की सबसे प्रैक्टिकल और इंपैक्टफुल सीख हो सकती है। सुबह की चाय पीते हुए प्रकाश ने किताब पढ़नी शुरू की।
इस लेसन की पहली ही लाइन थी:
“It’s not about managing time; it’s about managing energy.”
प्रकाश को यह बात कुछ कन्फ्यूजिंग लगी। उसने हमेशा सुना था कि टाइम मैनेजमेंट ही प्रोडक्टिविटी का सबसे बड़ा रहस्य है, लेकिन मरेस कुछ और ही कह रहे थे। उसने पढ़ना जारी रखा।
किताब में बताया गया था कि हर इंसान के एनर्जी लेवल्स पूरे दिन में फ्लकचुएट करते हैं। कोई सुबह ज्यादा एनर्जेटिक होता है, तो कोई रात में। मरेस ने कहा था कि प्रोडक्टिविटी का असली राज यह है कि आप अपने पीक एनर्जी आवर्स को पहचानें और उन्हें सबसे चैलेंजिंग कामों के लिए इस्तेमाल करें। बाकी लो एनर्जी आवर्स में ऐसे टास्क करें, जो ज्यादा दिमाग नहीं लगाते।
प्रकाश ने सोचा, “यार, यह तो एकदम सही बात है। मैं अक्सर सबसे मुश्किल कामों को तब टैकल करता हूं जब मेरा दिमाग थका हुआ होता है और फिर उस काम में ज्यादा वक्त लग जाता है।”
उसने तुरंत अपनी नोटबुक निकाली और खुद से सवाल किए:
- मेरे दिन के कौन से घंटे सबसे प्रोडक्टिव होते हैं?
- मैं किस वक्त सबसे थका हुआ महसूस करता हूं?
- क्या मैं अपने हाई एनर्जी समय का सही इस्तेमाल कर रहा हूं?
उसने अपनी दिनचर्या पर गौर किया। उसे याद आया कि सुबह का समय उसके लिए सबसे अच्छा होता है। चाय पीने के बाद वह तरोताजा महसूस करता था और तब उसका दिमाग सबसे तेज चलता था। लेकिन अक्सर वह उस वक्त ईमेल्स और छोटे-मोटे कामों में उलझा रहता था। दूसरी तरफ, दोपहर के बाद उसका एनर्जी लेवल गिरने लगता था, लेकिन तब वह अपने सबसे चैलेंजिंग टास्क्स पर काम करने की कोशिश करता।
किताब में मरेस ने सुझाव दिया था कि अपनी एनर्जी को मैनेज करने के लिए सबसे पहले आपको अपने एनर्जी साइकिल्स को ट्रैक करना होगा।
प्रकाश ने इसे अगले कुछ दिनों के लिए आजमाने का फैसला किया। उसने अपने दिन के हर घंटे का एनर्जी लेवल नोट करना शुरू किया। उसने एक सिंपल स्केल बनाया: लो, मीडियम, और हाई।
कुछ दिनों तक ट्रैक करने के बाद प्रकाश ने पैटर्न्स देखे।
- सुबह 8 बजे से 11 बजे तक उसका एनर्जी लेवल हाई था।
- दोपहर 2 बजे से 4 बजे के बीच यह लो हो जाता था।
- शाम को 6 बजे के बाद यह फिर से मीडियम हो जाता था।
यह पैटर्न्स देखकर उसे लगा कि अब वह अपने टास्क्स को बेहतर ऑर्गेनाइज कर सकता है। उसने सोचा कि चैलेंजिंग काम, जैसे प्रेजेंटेशंस बनाना या स्ट्रैटेजिक प्लानिंग, वह सुबह करेगा, जबकि रिपीटिटिव काम, जैसे ईमेल्स का जवाब देना, वह दोपहर में करेगा।
अगले दिन प्रकाश ने अपनी नई स्ट्रैटेजी को लागू किया। उसने सुबह उठते ही अपने सबसे इंपॉर्टेंट काम की लिस्ट बनाई। उसका पहला काम था अगले हफ्ते की क्लाइंट प्रेजेंटेशन तैयार करना। उसने चाय पीते ही इस पर काम करना शुरू किया।
पहले वह इस काम को दोपहर में करता, लेकिन अब उसने इसे अपने हाई एनर्जी समय पर शिफ्ट कर दिया। प्रकाश को एक बड़ा फर्क महसूस हुआ। मुश्किल काम, जो पहले उसे भारी लगता था, अब सरप्राइजिंगली आसान लग रहा था। वह जल्दी और ज्यादा फोकस के साथ काम कर पाया। दो घंटे में उसका प्रेजेंटेशन ड्राफ्ट तैयार हो गया।
उसने खुद से कहा, “यार, यह एनर्जी मैनेजमेंट तो सच में कमाल की चीज है।”
दोपहर में, जब उसका एनर्जी लेवल लो था, उसने सिर्फ ईमेल्स और छोटे-मोटे एडमिन टास्क्स पर काम किया। उसने देखा कि यह टास्क्स कम एनर्जी में भी आसानी से हो गए।
उसे महसूस हुआ कि उसने अपने समय और एनर्जी का सही इस्तेमाल किया।
शाम को, जब उसका एनर्जी लेवल मीडियम पर था, उसने अपनी सेल्फ लर्निंग पर काम किया। उसने किताब के अगले कुछ पेज पढ़े और एक नई स्किल पर रिसर्च की। दिन के अंत में उसे संतोष महसूस हुआ।
प्रकाश को समझ आया कि वह अक्सर खुद पर जरूरत से ज्यादा दबाव डालता था। वह सोचता था कि हर वक्त प्रोडक्टिव रहना ही कामयाबी का राज है। लेकिन अब उसे एहसास हुआ कि ब्रेक्स और रिकवरी equally important हैं।
उसने अपनी रूटीन में ब्रेक्स को शामिल करने का फैसला किया। उसने पोमोडोरो टेक्निक को थोड़ा ट्वीक किया। इन ब्रेक्स में वह पानी पीता, कुछ वॉक करता, या बस अपनी आंखें बंद करके आराम करता।
कुछ दिनों में ही प्रकाश ने नोटिस किया कि उसकी एफिशिएंसी बढ़ गई है। वह पहले जितना काम छह घंटे में करता था, अब चार घंटे में कर पा रहा था।
अरुण ने हंसते हुए कहा, “तू तो अब प्रोडक्टिविटी गुरु बन गया है!”
प्रकाश ने जवाब दिया, “यार, यह सब कुछ इतना आसान लग रहा है, लेकिन मैं पहले कभी इस पर ध्यान ही नहीं देता था। बस काम करता रहता था, बिना यह सोचे कि सही वक्त पर सही काम करना कितना जरूरी है।”
अरुण ने पूछा, “तो अब क्या तू हर वक्त रिलैक्स रहता है?”
प्रकाश ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं यार, काम का प्रेशर अब भी होता है। लेकिन अब मैं स्मार्ट तरीके से काम करता हूं। सबसे मुश्किल काम तब करता हूं, जब मेरी एनर्जी हाई होती है। और जब मेरी एनर्जी कम होती है, तो मैं खुद को अननेसेसरी पुश नहीं करता।”
रात को प्रकाश ने अपनी जर्नल में लिखा:
“आज मैंने महसूस किया कि ऊर्जा का प्रबंध समय के प्रबंधन से अधिक महत्वपूर्ण है। By aligning my tasks with my energy levels, I become more productive and less stressed. This is a game-changer.”
प्रकाश की यह नई हैबिट अब उसकी लाइफ का हिस्सा बन चुकी थी। उसने जाना कि एनर्जी मैनेजमेंट सिर्फ काम के लिए नहीं, बल्कि हर चीज के लिए जरूरी है, चाहे वह फिटनेस हो, रिलेशनशिप्स हो, या सेल्फ ग्रोथ। अगले दिन सुबह, प्रकाश अपनी रूटीन चाय के साथ बैठा और किताब का नया चैप्टर खोलते ही मुस्कुरा दिया। आज का टॉपिक था कल्टिवेटिंग ए स्ट्रेटेजिक माइंडसेट। उसने सोचा, यह तो अब तक की सारी सीखों का निचोड़ लगता है। अगर मैं इस पर पकड़ बना लूं, तो शायद मेरी लाइफ एक बिल्कुल नए लेवल पर पहुंच सकती है।
किताब की पहली लाइन ने ही प्रकाश का ध्यान खींच लिया: एक स्ट्रेटेजिक माइंडसेट केवल समस्याओं का समाधान करने के बारे में नहीं है, यह सही प्रश्न पूछने के बारे में है, जो गहरी दृष्टि प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं। प्रकाश ने रुककर खुद से पूछा, क्या मैं अपनी लाइफ में सही सवाल पूछता हूं? उसे तुरंत जवाब मिला, शायद नहीं।
किताब में मिरिस ने बताया कि एक स्ट्रेटेजिक माइंडसेट का मतलब है हर स्थिति को सिर्फ सतही तौर पर न देखना, बल्कि गहराई से सोचना। इसका मतलब है कि समस्या का हल ढूंढने से पहले यह समझना कि समस्या असल में है क्या। प्रकाश को लगा कि यह बात उसकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों पर लागू होती है।
कुछ साल पहले, प्रकाश को ऑफिस में एक बड़ा प्रोजेक्ट दिया गया था। उसने पूरे जोश के साथ काम शुरू किया, लेकिन आखिरी वक्त पर प्रोजेक्ट फेल हो गया। उस वक्त उसने इसे बैड लक मान लिया था। लेकिन अब सोचते हुए उसे समझ आया कि असल में उसने सही सवाल नहीं पूछे थे। उसने कभी यह नहीं सोचा कि क्लाइंट की असली जरूरत क्या थी; वह बस सरफेस लेवल डिटेल्स पर काम करता रहा।
किताब में आगे लिखा था कि स्ट्रेटेजिक माइंडसेट डेवलप करने का पहला कदम है आस्क बेटर क्वेश्चन्स। मिरिस ने सुझाव दिया था कि हर प्रॉब्लम के लिए आपको तीन सवाल जरूर पूछने चाहिए:
- क्यों यह समस्या मौजूद है?
- क्या संभावित समाधान हैं?
- सबसे प्रभावी और कम प्रयास वाला समाधान कौन सा है?
प्रकाश ने तुरंत अपनी नोटबुक निकाली और आज ऑफिस में होने वाली एक मीटिंग के लिए तैयारी शुरू कर दी। उसने मीटिंग के एजेंडा को देखा और इन तीनों सवालों को अप्लाई किया। उसे महसूस हुआ कि इन सवालों ने उसे क्लैरिटी दी और उसने पहले ही कुछ प्रैक्टिकल सॉल्यूशंस सोच लिए थे।
उस दिन, मीटिंग के दौरान जब बॉस ने टीम से प्रॉब्लम का हल पूछा, प्रकाश ने अपने स्ट्रेटेजिक तरीके से तैयार किए गए इनसाइट्स शेयर किए। उसका जवाब सुनकर सभी इंप्रेस हुए। बॉस ने कहा, प्रकाश, तुम्हारा पर्सपेक्टिव बेहद क्लियर और प्रैक्टिकल है। प्रकाश को अंदर से गर्व महसूस हुआ। उसने खुद से कहा, यार, यह सही सवाल पूछने की ताकत है।
किताब में एक और बात थी, जिसने प्रकाश को गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया। मिरिस ने लिखा था, अ स्ट्रेटेजिक माइंडसेट थ्राइव्स ऑन क्रिएटिविटी एंड कलेक्टिव इंटेलिजेंस। प्रकाश को समझ आया कि सिर्फ खुद के दम पर सोचने के बजाय दूसरों की राय और उनकी स्किल्स का फायदा उठाना भी एक बड़ी ताकत है।
उसने सोचा कि क्या वह हमेशा अकेले ही सारे सॉल्यूशंस ढूंढने की कोशिश करता रहा। जवाब था, हां। उसने उसी वक्त एक नई आदत अपनाने का फैसला किया। उसने अपनी टीम में एक ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन प्लान किया, जिसमें हर किसी को अपनी राय रखने का मौका मिले। उसने महसूस किया कि दूसरों के पर्सपेक्टिव से उसे वो इनसाइट्स मिल सकते हैं, जिनके बारे में उसने कभी सोचा ही नहीं था।
अगले हफ्ते, जब प्रकाश ने अपनी टीम के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया, तो उसने देखा कि एक टीम में कई अलग-अलग आइडियाज मिलते हैं। एक जूनियर मेंबर ने एक ऐसा आईडिया दिया, जो सबसे प्रैक्टिकल और कॉस्ट-इफेक्टिव था। प्रकाश को लगा कि अगर वह अपनी पुरानी आदत के मुताबिक अकेले डिसीजन लेता, तो यह ब्रिलियंट आईडिया शायद सामने ही नहीं आता।
मिरिस ने किताब में क्रिएटिविटी को भी स्ट्रेटेजिक माइंडसेट का एक अहम हिस्सा बताया था। उन्होंने कहा था, क्रिएटिविटी इज नॉट लिमिटेड टू आर्ट। इट्स द एबिलिटी टू लुक एट प्रॉब्लम्स फ्रॉम न्यू एंगल्स एंड क्राफ्ट इनोवेटिव सॉल्यूशंस।
प्रकाश ने इसे अपनी लाइफ में इंप्लीमेंट करने के लिए एक और एक्सरसाइज शुरू की। उसने हर दिन एक समस्या के लिए कम से कम तीन अलग-अलग सॉल्यूशंस सोचना शुरू किया। पहले यह कुछ मुश्किल लगा, लेकिन धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि उसका दिमाग ज्यादा फ्लेक्सिबल हो रहा है।
एक दिन, जब प्रकाश ऑफिस में एक टाइट डेडलाइन के साथ फंसा हुआ था, उसने अपनी क्रिएटिविटी को टेस्ट करने का फैसला किया। उसने अपने यूजुअल तरीके को छोड़कर एक नया और सिंप्लीफाइड तरीका अपनाया। नतीजा यह हुआ कि उसका काम पहले से आधे समय में पूरा हो गया। उसने महसूस किया कि क्रिएटिविटी सिर्फ आर्ट नहीं है; यह काम को स्मार्टली टैकल करने का तरीका भी है।
प्रकाश ने किताब के उस हिस्से को भी गहराई से पढ़ा, जहां मिरिस ने कलेक्टिव इंटेलिजेंस के बारे में लिखा था। उन्होंने कहा था कि हर इंसान का अपना एक यूनिक पर्सपेक्टिव होता है और जब इन पर्सपेक्टिव्स को मिलाया जाए, तो एक्स्ट्राऑर्डिनरी रिजल्ट्स मिल सकते हैं।
प्रकाश ने खुद से कहा, यार, यह तो टीम वर्क का अमेजिंग पावर है। उसने अपनी टीम के साथ काम करते हुए यह फिलॉसफी अपनानी शुरू कर दी। अब वह हर मीटिंग में अपनी राय देने से पहले दूसरों की बात सुनता। उसने देखा कि इससे उसे नई इनसाइट्स मिलती हैं और उसका डिसीजन मेकिंग प्रोसेस पहले से ज्यादा इंफॉर्म्ड हो गया है।
प्रकाश ने महसूस किया कि स्ट्रेटेजिक माइंडसेट सिर्फ काम के लिए नहीं, बल्कि पर्सनल लाइफ के लिए भी जरूरी है। उसने खुद से सवाल किया:
- क्या मैं अपने गोल्स को लेकर क्लियर हूं?
- क्या मैं अपने निर्णयों को सही तरीके से विश्लेषण करता हूं?
- क्या मैं अपनी क्रिएटिविटी और दूसरों की इंटेलिजेंस का सही इस्तेमाल कर रहा हूं?
उसने महसूस किया कि स्ट्रेटेजिक माइंडसेट डेवलप करना एक ऑनगोइंग प्रोसेस है। यह कोई ऐसा स्किल नहीं है, जो एक बार सीख लिया जाए, बल्कि इसे हर दिन रिफाइन करना होता है। रात को प्रकाश ने अपनी जर्नल में लिखा:
“टुडे आई लर्न्ड दैट अ स्ट्रेटेजिक माइंडसेट इज अबाउट क्लैरिटी, क्रिएटिविटी, एंड कोलैबोरेशन। इट्स नॉट जस्ट अबाउट सॉल्विंग प्रॉब्लम्स; इट्स अबाउट ट्रांसफॉर्मिंग चैलेंजेज़ इंटू अपॉर्च्युनिटीज़। दिस इज अ माइंडसेट आई वांट टू कल्टिवेट एवरी डे।“
प्रकाश की लाइफ अब पूरी तरह बदल चुकी थी। उसने किताब स्ट्रेटेजिक माइंडसेट के हर लेसन को न केवल समझा, बल्कि अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाया। वह हर सुबह चाय के साथ किताब के कुछ पन्ने पढ़ता और उस पर सोचता कि इसे अपनी लाइफ में कैसे लागू कर सकता है। उसने देखा कि इन छोटे-छोटे बदलावों ने उसकी प्रोडक्टिविटी, सोचने के तरीके, और ओवरऑल सैटिस्फैक्शन को कितना बेहतर बना दिया है।
अब प्रकाश सिर्फ कामयाबी के पीछे भागने वाला आदमी नहीं रहा। वह हर कदम पर सोचता, क्या यह कदम मेरे लॉन्ग–टर्म गोल्स के लिए सही है? उसने अपने हर दिन के काम को अपने बड़े मकसद से जोड़ना सीख लिया था। अब वह अपने एनर्जी साइकिल्स के मुताबिक काम करता। अपने लो–एनर्जी समय को हल्के टास्क्स के लिए और हाई–एनर्जी समय को सबसे मुश्किल और क्रिएटिव कामों के लिए बचाता।
प्रकाश की सबसे बड़ी जीत यह थी कि उसने स्ट्रेटेजिक माइंडसेट को न केवल अपनी प्रोफेशनल लाइफ में, बल्कि पर्सनल लाइफ में भी उतारा। उसने महसूस किया कि यह सोचने का तरीका उसके रिश्तों, सेहत, और खुद की ग्रोथ के लिए भी उतना ही जरूरी है जितना उसके करियर के लिए।
एक दिन ऑफिस में, उसकी टीम ने उसे एक कॉम्प्लेक्स प्रोजेक्ट सौंपा। पहले के प्रकाश को यह काम बोझ की तरह लगता, लेकिन इस बार उसने कूल रहकर हर स्थिति को एनालाइज किया। उसने टीम के साथ मिलकर सही सवाल पूछे, हर पर्सपेक्टिव को सुना, और क्रिएटिविटी के साथ एक ऐसा सॉल्यूशन तैयार किया जो सभी को प्रैक्टिकल और प्रभावी लगा। प्रोजेक्ट न केवल समय पर पूरा हुआ, बल्कि क्लाइंट से भी उसे बहुत तारीफ मिली।
प्रकाश के बॉस ने मीटिंग के दौरान कहा, “प्रकाश, तुम्हारे काम करने के तरीके में जो क्लैरिटी और स्ट्रेटेजी दिखती है, वह काबिले–तारीफ है।“
यह सुनकर प्रकाश ने मन ही मन सोचा कि यह बदलाव सिर्फ उसकी मेहनत का नतीजा नहीं, बल्कि इस किताब और इसके लेसंस की वजह से है, जिसने उसकी सोचने का तरीका ही बदल दिया।
पर्सनल लाइफ में भी प्रकाश के रिश्ते पहले से बेहतर हो गए थे। अब वह हर समस्या को एक चैलेंज की तरह देखता और उसे सॉल्व करने के लिए क्रिएटिव तरीके अपनाता। उसने अपने दोस्तों और परिवार के साथ ज्यादा मीनिंगफुल कन्वर्सेशन करना शुरू किया। उसने अपनी प्रायोरिटी को लेकर क्लैरिटी हासिल कर ली थी।
रात को जब प्रकाश किताब का आखिरी पन्ना पढ़ रहा था, तो उसने महसूस किया कि यह सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि उसके लिए एक गाइडबुक थी। उसने किताब को बंद किया और अपनी नोटबुक में लिखा:
“दिस इज़नॉट द एंड; इट्स द बिगिनिंग ऑफ अ न्यू वे ऑफ लिविंग। स्ट्रेटेजिक थिंकिंग इज़ नॉट जस्ट अ स्किल; इट्स अ लाइफस्टाइल। थैंक यू, मिरिस, फॉर शोइंग मी हाउ टू लिव बेटर, वर्क स्मार्टर, एंड ड्रीम बिगर।“
प्रकाश ने अपने आप से वादा किया कि वह इस माइंडसेट को हमेशा अपने साथ रखेगा। उसने अपनी किताब को अलमारी में नहीं रखा, बल्कि अपने डेस्क पर रख लिया ताकि जब भी उसे क्लैरिटी की जरूरत हो, वह इसे खोलकर एक बार फिर से पढ़ सके।
उस रात, प्रकाश सोने से पहले मुस्कुराया। उसे लगा कि वह अब वह इंसान बन गया है, जो अपनी लाइफ को केवल सरवाइव नहीं, बल्कि थ्राइव कर रहा है। और यही असली जीत थी।
तो, फ्रेंड्स, यह थी हमारी आज की बुक समरी। आपको कैसी लगी? कमेंट करके जरूर बताएं और धन्यवाद, आपका समरी के एंड तक सुनने के लिए।