Mind Management Not Time Management
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जैसे-जैसे समय बदलता जाता है, बहुत सारी चीजें बदलती हैं। जो चैलेंज हमारे सामने आते हैं, उनके नए-नए सॉल्यूशंस भी सामने आते हैं। समय रहते हमें भी उन सॉल्यूशंस को समझना चाहिए। आज के दौर का सबसे बड़ा चैलेंज है डिस्ट्रक्शन, टाइम को मैनेज न कर पाना और प्रोडक्टिव न हो पाना। इसी चैलेंज को सॉल्व करने के लिए जो नई थ्योरी, जो नया कांसेप्ट हम आज डिस्कस करने वाले हैं, वह है माइंड मैनेजमेंट का, न कि टाइम मैनेजमेंट का।
आज की बुक समरी है माइंड मैनेजमेंट, नॉट टाइम मैनेजमेंट: प्रोडक्टिविटी व्हेन क्रिएटिविटी मैटर्स, जिसे लिखा है डेविड कडवी ने। डेविड कडवी एक राइटर और पॉडकास्टर हैं। वह लोगों को उनके क्रिएटिव काम में प्रोडक्टिव बनने में मदद करते हैं। उनकी बुक्स की लाखों से ज्यादा कॉपियां बिक चुकी हैं। डेविड TED, The Post और Observer में भी आ चुके हैं।
कई बुक्स और स्पीकर्स बताते हैं कि अपने टाइम को कैसे अच्छे से इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वे आपसे कहते हैं कि यह करो या वह करो। लेकिन सच्चाई यह है कि चीजों को पूरा करने का टाइम मैनेजमेंट से कोई ताल्लुक नहीं है। यह सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने माइंड को कैसे मैनेज करते हैं। यह समरी माइंड मैनेजमेंट को पाने के लिए आपको कुछ सिंपल और पावरफुल टेक्निक्स सिखाने वाली है। तो आइए, बिना देर किए शुरू करते हैं आज की बुक समरी माइंड मैनेजमेंट, नॉट टाइम मैनेजमेंट: प्रोडक्टिविटी व्हेन क्रिएटिविटी मैटर्स बाय डेविड कडवी।
आप इसे अपने चारों ओर देखते हैं। रोज़ लोग पैसा कमाने की भागदौड़ में लगे रहते हैं। इसीलिए आपको हर सेकंड को सही जगह पर इस्तेमाल करना चाहिए। पैसा कमाने के लिए आप अपना कैलेंडर अलग-अलग एक्टिविटीज से इस कदर भर देते हैं कि आपके पास आराम करने का वक्त ही नहीं होता। इतना ही नहीं, आजकल तो लोग मल्टीटास्किंग भी करने लगे हैं, जैसे लंच करते हुए अपने ईमेल का जवाब देना। क्या यह वही हसल कल्चर, यानी भागदौड़ वाला कल्चर है, जिसका हिस्सा बनकर सभी गर्व महसूस करते हैं? क्या हमेशा थका-थका रहना, गुस्सा करना या परेशान महसूस करना आम बात हो गई है?
यह समरी यह साबित कर देगी कि टाइम मैनेजमेंट अब किसी काम का नहीं रहा और इससे आपको कुछ भी नहीं मिलेगा। आप यह सीखेंगे कि माइंड मैनेजमेंट सक्सेस पाने और कोई भी काम करने में कैसे आपकी मदद कर सकता है। आप यह भी सीखेंगे कि कुछ पाने के लिए आपको किसी भी तरह की जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं है। टाइम मैनेजमेंट नहीं, माइंड मैनेजमेंट अपने गोल्स को पाने का बेहतर तरीका है। तो आइए, शुरू करते हैं इस पहले चैप्टर से: माइंड मैनेजमेंट, नॉट टाइम मैनेजमेंट।
इस बुक के ऑथर डेविड कडवी खुद को एक राइटर नहीं मानते थे। उन्हें बचपन से ही लिखना कुछ खास पसंद नहीं था। लेकिन एक दिन उन्हें एक ऐसी बुक डील ऑफर की गई, जिसे कोई बेवकूफ ही मना करता। इसीलिए डेविड ने अपनी लाइफ को इस तरह प्लान किया ताकि वह एक बुक लिख सकें। सबसे पहले उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि उनके पास बुक लिखने के लिए अच्छा-खासा समय हो। उन्होंने अपने दोस्तों के साथ डिनर और दूसरे प्लान्स को कैंसिल कर दिया और उनकी जगह अपने राइटिंग सेशंस को रखा। डेविड ने डेट्स पर जाना भी छोड़ दिया। यहां तक कि अपनी ग्रोसरी और खाना भी घर पर डिलीवर करवाने लगे। उन्होंने अपनी बुक लिखने पर फोकस करने के लिए जी-जान लगा दी थी।
एक राइटर के दिमाग में शब्दों का जैसे एक पिटारा सा होता है, लेकिन डेविड के लिए यह सब इतना नेचुरल या आसान नहीं था। जब वह लिखने बैठते, तो एक शब्द भी नहीं लिख पाते थे। न जाने कंप्यूटर के सामने बैठे-बैठे कितने घंटे निकल जाते। फिर उन्हें खुद पर प्रेशर महसूस होने लगा। डेविड को अगले कुछ हफ्तों में बुक का 25% काम खत्म करके पब्लिशर को दिखाना था। अगर वह ऐसा नहीं कर पाते, तो डील कैंसिल हो सकती थी। डेविड अपनी फैमिली और दोस्तों को निराश नहीं करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने कोस्टा रिका में एक रिट्रीट जॉइन करने का मन बनाया।
डेविड जानते थे कि जगह बदलने से शायद उन्हें राइटर्स ब्लॉक से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। वहां उनकी मुलाकात डिएगो से हुई। डिएगो ने उनसे दोस्ताना अंदाज में बात की। इस छोटी-सी बातचीत ने डेविड को अच्छा महसूस कराया। जब वह घर लौटे, तो उन्होंने कंप्यूटर के सामने बैठकर एक घंटे में पहला चैप्टर लिख लिया। डेविड ने समझा कि यह सब लिखने के लिए समय निकालने से नहीं, बल्कि सही मेंटल स्टेट में होने से संभव हुआ था। यही माइंड मैनेजमेंट है।
माइंड मैनेजमेंट का मतलब है अपनी क्रिएटिव एनर्जी को प्रायोरिटी देना। लेकिन यह आपका वक्त भी जाया कर सकता है। आपने कभी अपनी लंबी टू-डू लिस्ट देखकर जीरो मोटिवेशन महसूस किया है? माइंड मैनेजमेंट आपको इस मुश्किल से निकाल सकता है। इसका मतलब है, किसी काम या प्रॉब्लम को अलग नजरिए से देखना।
नेक्स्ट चैप्टर: क्रिएटिव स्वीट स्पॉट।
क्रिएटिव होना कोई ऐसी चीज नहीं है जो आसानी से आपके अंदर आ जाती है। यह कोई ग्रोसरी नहीं है, जिसे आप खरीद कर ला सकते हैं। क्रिएटिविटी की प्रोसेस में वक्त लगता है। कोई कहानी सुनाने, गाना लिखने, या फिर एक पेंटिंग बनाने के लिए आपका स्टेट ऑफ माइंड सही होना बहुत जरूरी है।
डेविड क्रिएटिव मोड में घुसने के लिए दो तरह की थिंकिंग का इस्तेमाल करते हैं, जो हैं डायवर्जेंट थिंकिंग और कन्वर्जेंट थिंकिंग।
डायवर्जेंट थिंकिंग तब होती है, जब आपके थॉट्स यानी विचार बिखरे हुए होते हैं। इसमें आपका ध्यान कई चीजों पर होता है। जब आप इन अलग-अलग थॉट्स को जोड़ देते हैं, तो इसे कन्वर्जेंट थिंकिंग कहते हैं।
तब राइटिंग का ही एग्जांपल ले लीजिए। आप कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन उसे कहने के लिए आपके पास कई तरीके हैं। पहला, आप कहना क्या चाहते हैं? क्या आप इसे फॉर्मल तौर पर कहना चाहते हैं या फिर ऐसा कहना चाहते हैं जैसे आप एक दोस्त से बात कर रहे हों? क्या आप इसे कोई नाम नहीं देना चाहते या फिर आप सभी को यह बता देना चाहते हैं कि इसे आपने लिखा है? इसे डायवर्जेंट थिंकिंग कहते हैं।
कन्वर्जेंट थिंकिंग उसे कहते हैं जब आप अपने ऑप्शंस में से किसी एक को चुनते हैं। जैसे मान लीजिए कि आप अपने पहले प्यार के बारे में लिखना चाहते हैं। आप अपने रीडर्स के लिए अपनी राइटिंग के टोन को एक दोस्त की तरह पेश करना चाहते हैं। आप इसे कोई नाम नहीं देना चाहते क्योंकि आप खुद की पहचान सबके सामने नहीं लाना चाहते।
इसलिए, अच्छे क्रिएटिव आइडियाज बनाने के लिए आपको डायवर्जेंट और कन्वर्जेंट थिंकिंग दोनों की जरूरत होती है। अपने फाइनल प्रोडक्ट को ब्रिलियंट बनाने के लिए आपको सबसे बेहतरीन आइडियाज की जरूरत है। पर आप इन आइडियाज को कैसे ढूंढेंगे? अपने क्रिएटिव स्पॉट को पहचान कर।
आपका क्रिएटिव स्पॉट उस वक्त और उस जगह के बारे में बताता है जिसमें आप अपना बेस्ट क्रिएटिव काम कर पाते हैं। क्रिएटिव काम ऐसी चीज नहीं है जिसे आप किसी गाइड बुक की मदद से कर सकते हैं, जिसमें कोई लॉजिक या कोई मैथमेटिकल फार्मूला काम नहीं आता। क्रिएटिव वर्क एक ऐसा अनोखा थॉट प्रोसेस है जिसे हम अक्सर इनसाइट कहते हैं।
न्यूरोसाइंटिस्ट के मुताबिक इनसाइट अचानक हुए एहसास या नजरिए में हुए बदलाव को कहते हैं। इनसाइट को एक यूरेका मूमेंट भी मान सकते हैं, जो तब होता है जब कुछ मिलने से आपकी आंखों में खुशी के आंसू आ जाते हैं।
क्या आपको कभी अचानक से कोई ब्रिलियंट प्लान या आइडिया आया है? उसे ही यूरेका या “मिल गया” मोमेंट कहते हैं। यह तब होता है जब गाने के कुछ मिसिंग शब्द आपको अचानक से मिल जाएं या आप अपनी कहानी का एक परफेक्ट प्लॉट ढूंढ निकालें।
अब, दोबारा कुछ पेंट करना चाहते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि क्या पेंट करें? तो इसके लिए अपने पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर को पेंट करने के बारे में अचानक याद आना एक यूरेका मोमेंट होगा।
खास वक्त के दौरान अपने क्रिएटिव स्पॉट को ढूंढना आसान हो सकता है। याद रखिएगा कि यह माइंड मैनेजमेंट के बारे में है, टाइम मैनेजमेंट के बारे में नहीं।
आपकी एनर्जी हर एक दिन या पूरे दिन एक जैसी नहीं रहती। जैसे जॉब पर आपकी बहुत सी एनर्जी खर्च हो जाती है। वैसे ही अपने दोस्तों के साथ सोशलाइज करना या अपनी पेंटिंग या नॉवेल पर काम करने जैसे काम भी आपकी बहुत सारी एनर्जी ले लेते हैं।
इसलिए, दिन का वह सही वक्त ढूंढ निकालिए जब आपके अंदर सबसे ज्यादा एनर्जी होती है। आपको अपने सिस्टम यानी अपने स्लीप साइकल से भी तालमेल बनाकर रखना होगा। यह सिस्टम आपको दिन में जगाए रखने में मदद करता है।
इसे ऊपर जाती हुई एक लाइन की तरह सोचिए। जितना ज्यादा आप जागे रहेंगे, उतना ज्यादा आप अलर्ट रहेंगे। लेकिन जागे रहने के साथ-साथ अलर्ट रहने को आपका स्लीप डेटिंग रोक देता है।
दूसरे शब्दों में कहें, अगर आप एक रात अच्छे से नहीं सोएंगे तो आपका स्लीप डेब्ट बहुत ज्यादा हो जाता है। अपने स्लीप डेब्ट को नीचे जाती हुई एक लाइन की तरह सोचिए, क्योंकि यह आपकी एनर्जी को कम करता है।
आपके सिस्टम और स्लीप डेब्ट दोनों की लाइन दोपहर के शुरुआती वक्त लगभग 2:30 बजे मिलती है। इसी वजह से आप इस वक्त सुस्त और थका हुआ महसूस करते हैं। अपनी बॉडी क्लॉक को समझने से आपको अपने काम पर आसानी से फोकस करने में मदद मिलती है।
बहुत से लोग सुबह-सुबह बहुत फोकस्ड होकर काम करते हैं। जैसे, बेस्ट वायलिन प्लेयर अपने दिन की शुरुआती दो-चार घंटे मन लगाकर प्रैक्टिस करते हैं। मशहूर राइटर वर्जिनिया वुल्फ और साइकोलॉजिस्ट बीएफ स्किनर ऐसा ही करते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि सुबह का वक्त वह समय होता है जब लोग पूरी तरह से जगे हुए और सबसे ज्यादा अलर्ट रहते हैं।
अपने क्रिएटिव स्पॉट को हासिल करने के लिए डेविड ने एक और तरीका बताया है। इसे वह फर्स्ट हवर रूल कहते हैं, जो अपने काम को पूरा करने में उन्हें डिसिप्लिन रखने में मदद करता है।
जब आप अपने दिन का सबसे पहला घंटा अपने प्रोजेक्ट पर लगाते हैं, तो उसे फर्स्ट हवर रूल कहते हैं। और यह कोई ऐसा-वैसा प्रोजेक्ट नहीं होना चाहिए, बल्कि आपका सबसे इंपॉर्टेंट प्रोजेक्ट होना चाहिए।
ऐसा करने से आप उस प्रोजेक्ट को जल्दी पूरा कर पाएंगे। इसे सुनकर ऐसा लग रहा होगा, ना, कि क्या यह सच में मुमकिन है? तो जवाब है- जी हां, बिल्कुल मुमकिन है।
अपने दिन की शुरुआत अपने सबसे इंपॉर्टेंट काम से कीजिए, यानी एक ऐसे काम से जो आपको करना ही है। ऐसा करने से इसे पूरा करने में आपके आलसी होने के चांसेस काफी कम हो जाते हैं। ऐसा करना उस काम में आने वाली रुकावट को भी रोकता है।
इस इंपॉर्टेंट लर्निंग को लेने के बाद बढ़ते हैं नेक्स्ट चैप्टर की ओर- द फोर स्टेजेस ऑफ क्रिएटिविटी।
जब आप असल में राइटिंग और पेंटिंग नहीं कर रहे होते हैं, तब भी आप राइटिंग और पेंटिंग कर सकते हैं। क्रिएटिविटी का प्रोसेस सिर्फ राइटिंग और पेंटिंग के बारे में नहीं है। इसे सोशल साइकोलॉजिस्ट ग्राहम वॉलास के क्रिएटिविटी के चार स्टेज कहते हैं।
पहला स्टेज है प्रिपरेशन यानी कि तैयारी करना। यह तब होता है जब आप अपने प्रोजेक्ट के बारे में सब कुछ सोचते हैं। आपकी स्टोरी में कौन से कैरेक्टर्स होंगे? आपका गाना कितना लंबा होगा? पेंटिंग बनाने के लिए आप किस चीज का इस्तेमाल करेंगे?
यह ब्रेनस्टॉर्मिंग यानी दिमाग चलाने वाला स्टेज है। इसमें आपके पास अपने प्रोजेक्ट की इतनी इंफॉर्मेशन होती है कि आप एक चलते-फिरते इंसाइक्लोपीडिया की तरह हो जाते हैं।
डेविड ने भी अपनी बुक पर इसी तरह काम करना शुरू किया था। ऐसा भी वक्त हुआ जब वह अपने लिविंग रूम में बैठकर इंफॉर्मेशन के ऐसे सोर्सेस को खोलकर देखा करते थे। डेविड के चारों ओर बुक्स, न्यूजपेपर और जर्नल्स बिखरे रहते थे। उनके पास एक वाइट बोर्ड भी था, जिस पर वह पॉसिबल टॉपिक्स और चैप्टर लिखते थे।
डेविड ने जो रिसर्च की थी, वह समय की बर्बादी नहीं थी। यह उन्हें क्रिएटिविटी के अगले स्टेज तक पहुंचने में मदद कर रही थी।
दूसरा स्टेज इनक्यूबेशन है। यह ऐसा वक्त होता है जब आप अपने प्रोजेक्ट पर इतना एक्टिव होकर काम नहीं करते हैं। आप शायद किसी और चीज पर काम कर रहे होते हैं या फिर अपने दोस्तों और फैमिली के साथ वक्त बिता रहे होते हैं।
हमें बीच-बीच में ब्रेक लेने की जरूरत होती है। किसी काम को तुरंत पूरा करने के लिए खुद को मजबूर करना हमेशा काम नहीं करता है। ऐसा करने से आप फ्रस्ट्रेट होने लगेंगे और आपको गुस्सा आ जाएगा।
ऐसा होने से आपको अपने क्रिएटिव स्पॉट को ढूंढने और तीसरे स्टेज पर जाने में मुश्किल होगी।
तीसरा स्टेज इल्यूमिनेशन है। यह यूरेका या “अहा” मूमेंट है। तीसरे स्टेज को पूरी तरह समझाया नहीं जा सकता, क्योंकि यह अचानक से होने वाला और अनप्रिडिक्टेबल होता है। जैसा कि बताया गया है, अगर आप जरूरी तैयारी नहीं करेंगे तो आप इस स्टेज तक नहीं पहुंच सकते।
आपको पहले स्टेज पर बहुत सा वक्त देना होगा। आइए जानते हैं कि पहला स्टेज आपको तीसरे स्टेज पर पहुंचने में कैसे मदद करता है। इसके लिए हम द बीटल्स के पॉल मैककार्टनी का एग्जांपल लेंगे।
पॉल ने येस्टर्डे नाम का वह यादगार गाना बड़े ही अनोखे तरीके से कंपोज किया था। उन्हें इस गाने की धुन अपने सपने में सुनाई दी थी। जब उनकी आंख खुली, तो वह आधी नींद में उठकर अपने पियानो पर उस धुन को बजाने लगे और इस तरह इतिहास के सबसे महान गानों में से एक गाना बना।
लेकिन यह इतना भी आसान नहीं था। येस्टर्डे लिखने से पहले भी पॉल कुछ गाने लिख और बना रहे थे।
वो सालों से म्यूजिक क्रिएट करते आ रहे थे, और क्योंकि वह “यस्टरडे” जैसा गाना लिख पाए थे, उनका काम वहीं नहीं रुक गया था। नहीं, पॉल ने यह पक्का किया कि वह चौथे स्टेज को भी अच्छे से पूरा करें, जो है वेरिफिकेशन।
चौथा स्टेज वेरिफिकेशन है। यह तब होता है, जब आप एलिमिनेशन की स्टेज में आए यूरेका मूवमेंट के बारे में सोचते हैं। इसमें आप यह पक्का कर लेते हैं कि आपका जो आइडिया था, वह फुल प्रूफ और ब्रिलियंट है। आप यह डबल-चेक करते हैं कि किसी चीज़ की कमी तो नहीं है।
पॉल को 100% विश्वास तो नहीं था कि उनका बनाया हुआ गाना ओरिजिनल था। उन्हें लगा कि हो सकता है यह भी एक ऐसी धुन थी, जो उन्होंने पहले कभी सुनी थी। ऐसे वक्त, जब नपी या सॉफ्टवेयर नहीं हुआ करते थे जो यह बता सके कि कोई धुन ओरिजिनल है या नहीं, पॉल ने डेढ़ साल इस बात को पक्का करने में ही लगा दिया कि वह धुन उनकी खुद की थी या नहीं। इसी दौरान उन्होंने अपने गाने को बदलने के लिए उसके लिरिक्स, ट्यून और अरेंजमेंट को सुधारने पर काफी काम किया।
अगर आप क्रिएटिविटी के हर स्टेज में अपना वक्त नहीं लगाएंगे, तो आप कभी कोई मास्टरपीस नहीं बना सकते। आपको इस पूरे प्रोसेस के हर स्टेज से होकर गुजरना होगा।
नेक्स्ट चैप्टर है द सेवन मेंटल स्टेट्स ऑफ क्रिएटिव वर्क।
डेविड का कोई स्ट्रिक्ट यानी सख्त नियम नहीं था, लेकिन उनके पास करने के लिए ऐसे काम और जाने के लिए ऐसी जगह थी, जो उन्हें लिखने के सही मूड में लाने में मदद करती थी। अपनी छोटी सी नोटबुक में कुछ लिखने के लिए वह जॉन हैडक सेंटर के 19वें फ्लोर पर जाते थे। यह थॉट्स शुरुआत में बिखरे हुए से रहते हैं, लेकिन इन्हें लिखने के बाद डेविड को वे दूसरी चीजें भी दिखने लगती थीं, जो उन्हें लगता था कि अपनी बुक में शामिल करनी चाहिए।
जॉन हैडक सेंटर डेविड को उनके थॉट्स को अरेंज करने में मदद करता था। अब्सें कॉफी नाम की एक कॉफी प्लेस थी, जो डेविड को बहुत पसंद थी। वहां का मन लुभाने वाला खूबसूरत नजारा और कॉफी बीन्स की सुगंध उस जगह को राइटिंग के लिए एक आइडियल जगह बनाती थी।
डेविड की तरह आप भी अपने मेंटल स्टेट के मुताबिक अलग-अलग तरीके के काम कर सकते हैं। आपका मेंटल स्टेट इन सात मेंटल स्टेट्स में से एक हो सकता है:
- प्रायोरिटाइज मेंटल स्टेट: यह तब होता है जब आप एक प्लान बनाते हैं। आप यह फैसला लेते हैं कि आपको क्या करने की जरूरत है और आप उसे कैसे हासिल करेंगे। इसमें आप यह भी डिसाइड करते हैं कि क्या इंपॉर्टेंट है और क्या नहीं। यही तो डेविड जॉन हैडक सेंटर में करते थे।
- एक्सप्लोर मेंटल स्टेट: यह रिसर्च करने के बारे में नहीं है। इसमें स्पेसिफिक सवालों के स्पेसिफिक जवाब देने की जरूरत नहीं होती। एक्सप्लोर मेंटल स्टेट में अपनी क्यूरियोसिटी को खोलने और इसके लिए गिल्टी फील न करने के बारे में कहा गया है। जैसे मान लीजिए कि आप कुछ पेंट करने का सोच रहे हैं। आपको क्या पेंट करना है, इस बात पर रिसर्च करते हुए आप पेंटिंग की हिस्ट्री पर एक पूरी डॉक्यूमेंट्री देख डालते हैं। आप अपनी क्यूरियोसिटी को फ्री छोड़ देते हैं।
- रिसर्च मेंटल स्टेट: यह ऐसी जगह है, जहां आप स्पेसिफिक सवाल और उसके जवाब ढूंढते हैं। डेविड ज्यादातर वक्त इसी स्टेट में रहते हैं। वह यह रिसर्च करते हैं कि एक चैप्टर को कैसे बनाया जाए या फिर यह कैसे वेरीफाई किया जाए कि अपनी बुक में जो थीम वह लिखने वाले हैं, वह सही है या नहीं।
- जनरल मेंटल स्टेट: यह वह स्टेट है, जहां आप एक्चुअल में काम करते हैं। आप पहले दिए गए मेंटल स्टेट्स में इकट्ठे किए गए आइडियाज को जोड़कर कुछ बनाते हैं, जैसे अपना पहला ड्राफ्ट लिखना।
- पॉलिश मेंटल स्टेट: यह स्टेज उस काम को एडिट करने और तराशने का है, जो आपने पिछली स्टेज में बनाया था। जैसे, आप यह ध्यान देते हैं कि आपके सेंटेंस का कोई मतलब हो। पेंटिंग में आप यह चेक करते हैं कि कैनवास पर ऐसी कोई जगह न छूट गई हो, जहां आपने पेंट नहीं किया हो, या कोई ऐसा कलर तो नहीं है जिसे और ज्यादा डीप या हल्का करने की जरूरत है।
- एडमिनिस्ट्रेटिव मेंटल स्टेट: आप हमेशा अपने क्रिएटिव काम पर फोकस नहीं कर सकते। आपकी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं, जो आपको करनी होंगी। जैसे, अपने बिल्स भरना और अपनी फैमिली के साथ वक्त बिताना। यह मेंटल स्टेट इसलिए जरूरी है क्योंकि आपको अपनी लाइफ के दूसरे एरिया पर भी ध्यान देना होगा।
- रीचार्ज मेंटल स्टेट: इसमें आपको खुद को आराम देने और रिफ्रेश करने की जरूरत होती है। एक दिन छुट्टी लीजिए या वेकेशन पर जाइए। जब डेविड अपनी बुक को लेकर स्ट्रेस लेते हैं, तो वह मसाज लेने चले जाते हैं। कभी-कभी फनी वीडियो या मूवी देखना भी इसमें मदद कर सकता है। खुद को शांत करने और अपने माइंड को रिलैक्स करने के तरीके ढूंढिए।
क्रिएटिव साइकल्स:
डेविड का बड़ा अजीब सा रूटीन था। रात को 12 बजे से सुबह 4 बजे तक वह सिर्फ अपनी बुक पर फोकस करते थे। सुबह 4 बजे वह लाइट ऑफ करते, अपना कंप्यूटर बंद करते और दोपहर तक सोते रहते। अगले दिन दोपहर में डेविड तैयार होते और कॉफी शॉप चले जाते। वह कैफे में तब तक काम करते, जब तक उसके बंद होने का वक्त नहीं हो जाता था।
इसी को डेविड क्रिएटिव साइकल कहते हैं। यह एक ऐसा रिपीट होने वाला साइकिल है, जिसमें अपने काम में आगे बढ़ने के साथ-साथ आपको आराम करने का वक्त भी मिलता है। क्रिएटिव साइकल में क्रिएटिविटी के चार स्टेज होते हैं, जिसमें आप प्रिपेयर, इनक्यूबेट, एलिमिनेट और वेरीफाई करते हैं। क्रिएटिव साइकल को टाइम पर बेस्ड होने की जरूरत नहीं है। यह हफ्तों और यहां तक कि कई अलग-अलग मौसम पर बेस्ड हो सकता है।
क्रिएटिविटी के यह सात मेंटल स्टेट्स और चार स्टेज किसी भी मास्टरपीस को बनाने में आपकी मदद कर सकते हैं।
दूसरा, डेविड हाल ही में अपनी बुक लिखने के लिए पनामा सिटी में रहने आए थे, पर अपने नए मोहल्ले को इतने अच्छे से नहीं जानते थे। इसलिए उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि इंटरव्यू के लिए उन्हें कोई अच्छी दूसरी जगह कहां मिल सकती थी। तीसरा, डेविड जानते थे कि इस इंटरव्यू का शेड्यूल बदलना नामुमकिन होगा, क्योंकि डॉक्टर रॉक जैसे जाने-माने लोग हमेशा बीजी रहते हैं। यह जिंदगी में एक बार मिलने वाले सुनहरे मौके जैसा था। ऐसा लग रहा था कि यह साफ है कि क्या होने वाला है—डेविड को पॉडकास्ट कैंसिल करना होगा।
उस दिन कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था, लेकिन डेविड का क्रिएटिव सिस्टम एक्टिवेट हुआ और उन्होंने डॉक्टर रॉक को एक ईमेल लिखा। न जाने कैसे, लेकिन अचानक से वह नाउम्मीद महसूस नहीं कर रहे थे। उन्होंने हर उस प्रॉब्लम का उपाय निकाल लिया था जो उनके सामने आ रही थी। आखिर में, डेविड डॉक्टर रॉक के साथ रिकॉर्डिंग करने में कामयाब हो गए थे।
क्रिएटिव सिस्टम में एक ऐसा रिपीटिंग प्रोसेस है, जो आपको अपने क्रिएटिव काम को करने में मदद करता है। यह आपको यह जानने में मदद करता है कि अपनी मेंटल एनर्जी को ध्यान में रखते हुए क्या स्टेप्स लेने चाहिए। क्रिएटिव सिस्टम को एक छतरी की तरह सोचिए, जो आपके क्रिएटिव साइकल और क्रिएटिविटी के स्टेज को कवर देता है। यह बेसिकली पूरे क्रिएटिव प्रोसेस की देखरेख करता है।
क्रिएटिव सिस्टम को कम से कम क्रिएटिव डोज़ की जरूरत होती है। यह वह सबसे छोटी चीज़ है जो आप अपने क्रिएटिव काम को आगे बढ़ाने के लिए कर सकते हैं। मान लीजिए कि आप एक राइटर हैं। आपका मिनिमम क्रिएटिव डोज़ है अपनी बुक का एक पैराग्राफ लिखना। मिनिमम क्रिएटिव डोज़ आपको अपनी दूसरी प्रायोरिटीज़ पर ध्यान देने में मदद करता है।
क्रिएटिव काम के लिए ओपन लूप भी अच्छी चीज है। आइए इसे एक एग्जांपल से समझते हैं। जब आप अपनी बिल्ली को खाना देते हैं, तो आप ध्यान देते हैं कि उसका खाना खत्म होने वाला है। आप सुपरमार्केट से बिल्ली का खाना लेने के लिए एक मेंटल नोट बना लेते हैं। यह एक ओपन लूप इसलिए है क्योंकि कैट फूड खरीदना आपके दिमाग में लगातार चलता रहता है, तब भी जब आप दूसरा काम कर रहे होते हैं। ओपन लूप आपके माइंड में जगह घेरते रहते हैं। यह मेंटल स्पेस तभी खाली हो सकती है जब आप उस काम को पूरा कर लेते हैं, यानी कैट फूड खरीद लेते हैं।
यह एक नेगेटिव चीज़ जैसा लग सकता है, लेकिन ओपन लूप आपकी क्रिएटिविटी के लिए फायदेमंद होते हैं। यह आपके प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। आइए उस एग्जांपल पर वापस चलते हैं, जहां आप एक राइटर थे और अपनी बुक के लिए एक पैराग्राफ लिख रहे थे। आपके दिमाग में एक ओपन लूप बनता है, जिसे आप अगले दिन और आगे आने वाले दिनों में वापस देख सकते हैं। इस तरह, अगर आप अपना पूरा दिन राइटिंग में नहीं भी लगा पाते हैं, तो भी आपको गिल्टी महसूस नहीं होगा। जब तक आप प्रोग्रेस कर रहे हैं, आप आगे बढ़ते रहेंगे और अपना मोमेंटम नहीं खोएंगे।
क्रिएटिव सिस्टम की सबसे अच्छी बात यह है कि आप बहुत सारे ओपन लूप रख सकते हैं। एक लूप आपकी स्टोरी के प्लॉट से जुड़ सकता है, जबकि दूसरा स्टोरी के कैरेक्टर के बैकग्राउंड से। क्रिएटिव सिस्टम आपको बहाने बनाने से भी रोकता है। आप यह भी नहीं कह सकते कि आपके पास टाइम नहीं है, क्योंकि मिनिमम क्रिएटिव डोज़ के लिए कुछ ही मिनट चाहिए होते हैं।
और अब वह मोमेंट जिसे हम कहते हैं कंक्लूजन।
अभी तक हमने जितने भी चैप्टर पढ़े और सुने, उनकी लर्निंग्स को यहां रिपीट करेंगे।
- माइंड मैनेजमेंट:
इसका मतलब है अपने काम को करने के लिए सही मेंटल स्टेट बनाना। यह खुद से यह पूछना है कि मैं कौन सा काम करने के मूड में हूं और ऐसा क्या कर सकता हूं जो उस मूड में फिट हो सके। - क्रिएटिव स्वीट स्पॉट:
इसे ढूंढकर आप माइंड मैनेजमेंट हासिल कर सकते हैं। डेविड जेंट ऑनर कन्वर्जन थिंकिंग अप्लाई करने से आप ऐसा कर पाएंगे। दोनों तरीकों से आप यूरेका मूवमेंट बना सकते हैं, जो आपके क्रिएटिव काम में अचानक आई कामयाबी की तरह होता है। - क्रिएटिविटी के चार स्टेज:
आपको कुछ कमाल बनाने के लिए इन सभी स्टेजेस से गुजरना होगा—प्रिपरेशन, इनक्यूबेशन, इलुमिनेशन, और वेरीफिकेशन। - मेंटल स्टेट्स:
ये सात हैं—प्रायोरिटाइज़, एक्सप्लोर, रिसर्च, जनरेट, पोलिश, एडमिनिस्ट्रेट, और रिचार्ज। - क्रिएटिव साइकल:
यह क्रिएटिव काम करने और आराम करने के लिए टाइम निकालने का रिपीटिंग साइकल है। यह डिसाइड करता है कि कौन सा टाइम फ्रेम आपके लिए काम करता है, चाहे वह हफ्ता हो, महीना हो या कोई सीजन। - क्रिएटिव सिस्टम:
यह क्रिएटिविटी के चार स्टेज और क्रिएटिव साइकल की देखरेख करता है। यह एक ऐसा रिपीटिंग प्रोसेस है जो आपको यह जानने में मदद करता है कि कौन से स्टेप्स लेने चाहिए।
आज की भागती हुई जिंदगी में, सभी जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा काम करने में लगे हुए हैं। लेकिन चीजों को धीरे-धीरे करने का अलग ही मजा है। उस प्रोसेस को एंजॉय कीजिए और जल्दबाजी मत कीजिए। जैसे कि कहावत है, “बड़ी चीजें उन्हीं को मिलती हैं जो उसके लिए इंतजार करते हैं।”
हमारे वेदों में भी कहा गया है कि “धैर्य में ही विजय है।”
डिस्ट्रैक्शन के दौर में अपनी क्रिएटिविटी को बढ़ाने और खुद को फोकस्ड रखने के लिए ये सभी टूल्स और लर्निंग्स आपके लिए अमूल्य साबित होंगी। आशा है कि आप इन्हें अपनी लाइफ में इम्प्लीमेंट करेंगे।
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